वात को ठीक रखने की सबसे अच्छी चीज है शुद्ध तेल। शुद्ध तेल का मतलब है तेल की घानी से निकला सीधा-सीधा तेल, मतलब जिसमें कुछ ना मिलाया गया हो। वाग्भट्ट जी ने इसी तेल को खाने की बात कही है। शुद्ध तेल के अंदर जो गंध (महक) होती है वो प्रोटीन है, दालों के बाद सबसे ज्यादा प्रोटीन तेलों में है। सभी तेलों में चार – पाँच तरह के प्रोटीन होते हैं। तेल का जो चिपचिपापन है वो इसका फैटी एसिड है। फैटी एसिड एक असंतृप्त अम्ल है जो शरीर में नहीं बनता अतः उसको भोजन द्वारा प्राप्त किया जाता है। फैटी एसिड से रक्त में बुरे (LDL, VLDL, Triglycerides) कोलस्ट्रोल का स्तर नहीं बढ़ता।
शुद्ध तेल से उसकी गंध (प्रोटीन) व चिपचिपापन (फैटी एसिड) निकालकर रिफाइंड करने में 6 से 7 केमिकल इस्तेमाल होते हैं व डबल रिफाइंड करने में 12 से 13 केमिकल इस्तेमाल होते हैं। जितने भी केमिकल रिफाइंड के लिए इस्तेमाल होते हैं सब अप्राकृतिक हैं और अप्राकृतिक कैमिकल ही दुनिया में जहर बनाते हैं व उनका मिश्रण जहर की तरफ ही लेकर जाता है।
दुनिया में सबसे ज्यादा वात के रोग हैं। घुटने दुखने से लेकर कमर दर्द, हड्डी के रोग, हृदयाघात व लकवा आदि वात के रोग हैं। वाग्भट्ट जी कहते हैं कि अगर आपको जिंदगी भर वात रोगें की चिकित्सा करनी पड़ जाए तो उसमें सबसे उपयोगी है शुद्ध तेल। जबकि रिफाइंड तेल के उपयोग से कमरदर्द, घुटनों के दर्द आदि रोग होते हैं।
घानी में तेल पेरते समय उसका तापमान 20 डिग्री 25 डिग्री सेन्टीग्रेट से ऊपर नही जाता । इसीलिए उस तेल के तत्व नष्ट नहीं होते। एक बार उच्च तापमान पर बना तेल दोबारा खाने लायक नहीं होता। जबकि रिफाइंड तेल को बनाने में 2 से 3 बार उच्च तापमान का प्रयोग किया जाता है।
कोलेस्ट्रोल क्या होता है?
यह एक चिकना पदार्थ है जो शरीर के लिए अति आवश्यक है। कोलेस्ट्रोल दो प्रकार के होते हैं: –
1.
बुरा कोलेस्ट्रोल (LDL, VLDL, Triglycerides) : बुरा कोलेस्ट्रोल बढ़ता है तो यह नाड़ियों में जमा होकर खून के बहाव में रूकावट डालता है जिससे कि नसों में रुकावट (ब्लोकेज) हो जाती है और हृदयघात का खतरा बढ़ जाता है।
2.
अच्छा कोलेस्ट्रोल (HDL) : अच्छा कोलेस्ट्रोल आपके रक्त में से बुरे कोलेस्ट्रोल के प्रभाव को खत्म करता है जिससे कि हृदयघात से सम्बधित बिमारियों से बचे रहते हैं।
घी और तेल को दोबारा गर्म न करें :
हम अपने घरों में कड़ाही में घी और तेल को बार-बार गर्म करके इस्तेमाल करते है। घी और तेल को बार-बार गर्म व ठंडा होने के कारण उसमें बनायें गये भोजन को विष के समान कर देता हैं। अत: घी और तेल को उचित मात्रा में लेकर एक बार इस्तेमाल करें। यही कारण है कि कच्ची घानी का तेल खाने पर भी लोगों को हृदयघात और जोड़ों के दर्द जैसी बिमारियां हो रही हैं।
(श्लोक संख्या: – 110, अध्यायः – मिश्रप्रकरणम् 6, भावप्रकाश भाग – 1 )