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भारत में छुआछूत का अस्तित्व नही था !

एडम नामक एक बिट्रिश अधिकारी द्वारा करवाए गए सर्वेक्षण की 1017 पृष्ठों की एक रपट सन् 1820 में प्रस्तुत की गई थी। उसके अनुसार तब भारत के विद्यालयों में 26 प्रतिशत ऊंची जातियों के छात्र तथा 64 प्रतिशत छोटी जातियों के छात्र पढ़ते थे। अर्थात जातिवाद या छुआ-छूत का कोई झगड़ा नही था। 1000 शिक्षकों मे 200 द्विज / ब्राह्मण जाति और शेष 800 डोम जाति तक के शिक्षक थे। सवर्ण जाति वाले छात्र भी उनसे बिना किसी द्वेष के पढ़ते थे।
सन् 1835 में लार्ड मैकाले ने एक व्यापक सर्वेक्षण करवाया था 1500 पृष्ठो में किये 1600 सर्वेक्षण कर्त्ताओं के अनुसार- मद्रास प्रैजीडेंसी में 1500 मेडिकल कॉलेज थे जिनमें एम ई के स्तर की शिक्षा दी थी। मैडिकल कॉलेजों के अधिकांश सर्जन नाई जाति के और इंजीनियरिंग कॉलेजों के अधिकांश आचार्य पेरियार जाति के थे। पेरियार जाति के ये आचार्य अत्यन्त कुशल वास्तुकार (इंजीनियर) थे। मदुरई आदि के सभी दक्षिण भारत के मन्दिर इन्हीं पेरियार वास्तुकारों द्वारा बनाए गए हैं। एक लिखित आदेश द्वारा इन पेरियार वास्तुकारों पर प्रतिबन्ध लगा दिया कि वे मन्दिर निर्माण नहीं कर सकते । ऐसा अन्यायपूर्ण आदेश मद्रास के जिला कलैक्टर ए. ओ. ह्यूम. द्वारा दिया गया था। लिखित रुप में उन्होने इस आदेश को कानून का रूप दिया था। 1781 में हैदरअली ने एक युद्ध में अंग्रेज कर्नल कूट की नाक काट दी। हैदर अली की सीमा के बाहर एक गांव में नाई जाति के एक सर्जन ने एक घण्टे की सर्जरी द्वारा कर्नल कूट की नाक जोड़ दी । कूट ने इग्लैण्ड जाकर यह घटना बतलाई तो वहां से डाक्टरों का एक दल आकर उस नाई सर्जन के पास 5-6 वर्ष तक रहा और सर्जरी सीखी। तब से इंग्लैण्ड और वहां के युरोप के अन्य देशों मे प्लास्टिक सर्जरी का प्रचार हुआ। अब जरा सोचें कि भारत में आज से केवल 175 साल पहले तक तो कोई जातिवाद यानि छुआ-छुत नही था। कार्य विभाजन, कला – कौशल की वृद्धि, समृद्धि के लिए जातियां तो जरूर थी पर जातियों के नाम पर ये घृणा, द्वेष, अमानवीय व्यवहार नही था। फिर ये कुरीति कब और किसके द्वारा और क्यों प्रचलित की गई ? हजारों साल में जो नहीं था वह कैसे हो गया? अपने देश-समाज की रक्षा व सम्मान के लिए इस पर खोज, शोध करने की जरूरत है। साथ ही बंद होने चाहिए ये भारत को चुन-चुन कर लांछित करने के, हीनता बोध जगाने के सुनियोजित प्रयास। हमें अपनी कमियों के साथ-साथ गुणों का भी तो स्मरण करते रहना चाहिए जिसमें समाज अपने प्रति हीन भावनाओं का शिकार न बन जाये। जो देश अपने अतीत को भूल जाता है उसका भविष्य भी नष्ट हो जाता है।
हम आप सब से प्रार्थना करते हैं कि समाज और देश को जोड़ने के लिए प्रयत्नशील रहें। धर्म, जात, वर्ण के नाम पर समाज और देश को बांटने और तोड़ने वाले बुरे इंसानो व गद्दारों के बहकावे में न आयें।

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