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गुरुकुल

अंग्रेजों ने किया शिक्षा का विध्वंसः मैकाले ने “भारतीय शिक्षा कानून” लागू किया और जो गुरुकुल दान पर चलते थे इन्हें दान देना गैर कानूनी घोषित कर दिया गया। इस प्रकार 1835 में भारतीय शिक्षा तंत्र को नष्ट करके भारत की रीढ़ तोड़ने का काम मैकाले द्वारा किया गया।

भारत एक ऐसा देश था जहाँ हजारों वर्षों से लाखों छोटे-बड़े गुरुकुलों में निःशुल्क शिक्षा दी जाती थी। विद्वान लेखक श्री धर्मपाल जी की पुस्तक “दी ब्यूटीफुल ट्री” के अनुसार भारत के बंगाल प्रात में (1857 में) इतने गुरुकुल थे जितने सारे इंग्लैण्ड में स्कूल भी नहीं थे। शिक्षकों और विद्यार्थियों के भोजन-वस्त्र आदि का खर्च शासन, मन्दिर और जनता देती थी। शिक्षा को व्यापार बनाने का काम अंग्रेजों ने शुरू किया जो आज पराकाष्ठा पर है।

दूध – पानी और शिक्षा का पैसा लेना कल्पना से बाहर था। देवताओं का देश कहलाने वाले ऐसे भारत के शिक्षा तंत्र को कानून बनाकर मैकाले और उसके साथियों ने समाप्त कर दिया।

सन् 1700 के आस – पास विश्व – व्यापार में 26 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाला भारत आज 0.2 प्रतिशत पर पहुंच गया है। भारत जब विश्वगुरु था, तब भारत में गुरुकुल शिक्षा – प्रणाली लागू थी। इस शिक्षा प्रणाली से निकले लोगों ने ही भारत को विश्वगुरु बनाया था। अतः आज यदि हमें भारत को फिर से विश्वगुरु बनाना है तो हमें इस शिक्षा प्रणाली को वापिस लाना होगा। गुरुकुल शिक्षा प्रणाली और मैकॉले शिक्षा प्रणाली में अंतर –

1. गुरुकुल शिक्षा प्रणाली विद्यार्थी को एक आदर्श मानव बनाने के लिए काम करती है जबकि मैकॉले शिक्षा प्रणाली एक आदर्श नौकर बनाने के लिए काम करती है।
2. गुरुकुल शिक्षा प्रणाली विद्यार्थी को अपने विवेक से निर्णय लेने के योग्य बनाती है जबकि मैकॉले शिक्षा प्रणाली विद्यार्थी को प्रचलन (फैशन) के अनुसार काम करने के लिए तैयार करती है।
3. गुरुकुल शिक्षा प्रणाली विद्यार्थी को जीवन के हर क्षेत्र – स्वास्थ्य, आजीविका, ज्ञानअर्जन आदि में स्वावलंबी बनाने के लिए कार्य करती है। जबकि मैकॉले शिक्षा प्रणाली जीवन के हर क्षेत्र में नौकर बनाने के लिए कार्य करती है।
4. गुरुकुल का विद्यार्थी भारतीय संस्कृति को समझता है व उसे गर्व से अपनाता है। जबकि मैकाले का विद्यार्थी भारतीय संस्कृति को हीन मानकर उसमें शर्म महसूस करता है तथा पश्चिमी संस्कृति को गर्व से अपनाता है।
5. गुरुकुल का विद्यार्थी अन्य मानवों से अपने संबंध को स्पष्ट समझता है और उनसे न्यायपूर्ण व्यवहार करता है। जबकि मैकॉले का विद्यार्थी अन्य मानवों से अपने संबंध को लाभ के आधार पर देखता है। इसी आधार पर अन्य मानवों का शोषण करता है और खुद भी शोषित होता है।
6. गुरुकुल का विद्यार्थी प्रकृति को अपना ही हिस्सा मानकर उसके साथ पोषणपूर्वक जीता है। जबकि मैकॉले का विद्यार्थी प्रकृति को अपने उपभोग की वस्तु समझता है और उसके साथ शोषणपूर्वक जीता है। फलतः पूरी प्रकृति ही जहरीली हो जाती है।
7. गुरुकुल का विद्यार्थी अपनी आवश्यकताओं को स्पष्टता से देखकर उनकी पूर्ती के रास्ते खोजकर सुखी होता है। जबकि मैकॉले का विद्यार्थी अपनी आवश्यकताओं को अनंत मानकर वस्तुओं के पीछे अंतहीन दौड़ लगाते हुए दुखी होता है।
8. गुरुकुल का विद्यार्थी साथ ही आयुर्वेद, देशी गोपालन, प्राकृतिक खेती, योग जैसी विद्यायें भी सीखता है। जबकि मैकॉले केवल आज के जमाने के तकनीक को सीखता है।
9. गुरुकुल का विद्यार्थी वास्तविक ज्ञान के साथ आज के जमाने के तकनीक – कम्प्यूटर आदि सीखता है ताकि उसका सदुपयोग कर सके। जबकि मैकॉले का विद्यार्थी केवल इस तकनीक को सीखता है और ज्ञान के अभाव में उसका गलत प्रयोग करता है।
10. गुरुकुल का विद्यार्थी अंग्रेजी भाषा इसलिए पढ़ता है ताकि विश्व में भारतीय संस्कृति का प्रसार कर सके। जबकि मैकॉले का विद्यार्थी अंग्रेजी भाषा इसलिए पढ़ता है क्योंकि उसे नौकरी करनी है। इसलिए गुरूकुल का विद्यार्थी संस्कृत, हिंदी में भी दक्ष होता है और अंग्रेजी में भी जबकि मैकॉले का विद्यार्थी संस्कृत हिंदी तो जानता ही नहीं साथ ही रटने के आधार पर सीखी हुई अंग्रेजी भाषा में भी दक्ष नहीं हो पाता।

अमर उजाला 22 अक्तूबर 2018

ब्रिटिश संसद को लिखा पत्र यहां न भिखारी न चोर
लॉर्ड मैकाले ने 1835 में ब्रिटिश संसद को पत्र लिखा था, जिसके अंश हैं-मैं भारत के कोने-कोने में घूमा हूं। मुझे एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं दिखाई दिया जो भिखारी हो, चोर हो। इस देश में मैंने इतनी दौलत देखी, इतने ऊंचे
चारित्रिक आदर्श गुणवान मनुष्य देखे हैं कि मैं नहीं समझता हम इस देश को
जीत पाएंगे, जब तक इसकी रीढ़ की हड्डी को नहीं तोड़ देते।
पंडित नेहरू की उर्दू में लिखी किताब ‘कुछ पुराने खत’ को भी नहीं करवाया किसी ने इश्यू
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शक्ल से भारतीय, अक्ल से अंग्रेज बना दूंगा

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